Brahma Chalisa In Hindi (श्री ब्रह्मा चालीसा): Arth Sahit

जानने की आवश्यकता
Brahma Chalisa फिर आपका जब मन करे बिना इन्टरनेट के आप पढ़ सकते है और साथ ही आप उनका अर्थ भी समझ सकते है हमने दोनों उपलब्ध करा दिया है।
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Name Brahma Chalisa : ब्रह्मा चालीसा
Category Chalisa
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Source ChalisaPDF.in

Brahma Chalisa In Hindi: ब्रह्म चालीसा हिंदू पौराणिक कथाओं में ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा को समर्पित एक हिंदू भक्ति भजन है। यह 40 छंदों या चौपाई से बना है, जो भगवान ब्रह्मा की स्तुति और आशीर्वाद मांगते हैं। भगवान ब्रह्मा से मार्गदर्शन, ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने के लिए भक्तों द्वारा चालीसा का पाठ किया जाता है।

ब्रह्म चालीसा की शुरुआत एक श्लोक से होती है जिसमें भगवान ब्रह्मा के दिव्य गुणों और ब्रह्मांड के निर्माण में उनकी भूमिका का वर्णन है। चालीसा में भगवान ब्रह्मा के विभिन्न गुणों का वर्णन किया गया है, जैसे उनके चार चेहरे, कमल के फूल के साथ उनका संबंध, और उनकी दिव्य पत्नी, ज्ञान की देवी सरस्वती।

चालीसा भगवान ब्रह्मा की उनकी बुद्धि, रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता के लिए भी प्रशंसा करती है। यह वर्णन करता है कि कैसे वह सभी ज्ञान का स्रोत है और जो अपने भक्तों पर आशीर्वाद प्रदान करता है। चालीसा जीवन में अज्ञानता, भ्रम और बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद भी मांगती है। श्री नवग्रह चालीसा

ब्रह्म चालीसा (Brahma Chalisa में अर्थ सहित लिखा है) भगवान ब्रह्मा के विभिन्न अवतारों जैसे दक्ष और प्रजापति को भी छूती है, और कैसे उन्हें पूरे हिंदू परंपरा में विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। यह जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए अच्छे कर्म करने और भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद लेने के महत्व का भी उल्लेख करता है।

श्री ब्रह्मा चालीसा – Brahma Chalisa In Hindi

Lyrics

श्री ब्रह्मा चालीसा

॥ दोहा ॥

जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू, चतुरानन सुखमूल।
करहु कृपा निज दास पै, रहहु सदा अनुकूल।

तुम सृजक ब्रह्माण्ड के, अज विधि घाता नाम।
विश्वविधाता कीजिये, जन पै कृपा ललाम।

॥ चौपाई ॥

जय जय कमलासान जगमूला, रहहू सदा जनपै अनुकूला।
रुप चतुर्भुज परम सुहावन, तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन।

रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा, मस्तक जटाजुट गंभीरा।
ताके ऊपर मुकुट विराजै, दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै।

श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर, है यज्ञोपवीत अति मनहर।
कानन कुण्डल सुभग विराजहिं, गल मोतिन की माला राजहिं।

चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये, दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये।
ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा, अखिल भुवन महँ यश विस्तारा।

अर्द्धागिनि तव है सावित्री, अपर नाम हिये गायत्री।
सरस्वती तब सुता मनोहर, वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर।

कमलासन पर रहे विराजे, तुम हरिभक्ति साज सब साजे।
क्षीर सिन्धु सोवत सुरभूपा, नाभि कमल भो प्रगट अनूपा।

तेहि पर तुम आसीन कृपाला, सदा करहु सन्तन प्रतिपाला।
एक बार की कथा प्रचारी, तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी।

कमलासन लखि कीन्ह बिचारा, और न कोउ अहै संसारा।
तब तुम कमलनाल गहि लीन्हा, अन्त विलोकन कर प्रण कीन्हा।

कोटिक वर्ष गये यहि भांती, भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती।
पै तुम ताकर अन्त न पाये, ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये।

पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा महापघ यह अति प्राचीन।
याको जन्म भयो को कारन, तबहीं मोहि करयो यह धारन।

अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं, सब कुछ अहै निहित मो माहीं।
यह निश्चय करि गरब बढ़ायो, निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये।

गगन गिरा तब भई गंभीरा, ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा।
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई, ब्रह्म अनादि अलख है सोई।

निज इच्छा इन सब निरमाये, ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये।
सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा, सब जग इनकी करिहै सेवा।

महापघ जो तुम्हरो आसन, ता पै अहै विष्णु को शासन।
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई, तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई।

भैतहू जाई विष्णु हितमानी, यह कहि बन्द भई नभवानी।
ताहि श्रवण कहि अचरज माना, पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना।

कमल नाल धरि नीचे आवा, तहां विष्णु के दर्शन पावा।
शयन करत देखे सुरभूपा, श्यायमवर्ण तनु परम अनूपा।

सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर, क्रीटमुकट राजत मस्तक पर।
गल बैजन्ती माल विराजै, कोटि सूर्य की शोभा लाजै।

शंख चक्र अरु गदा मनोहर, पघ नाग शय्या अति मनहर।
दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू, हर्षित भे श्रीपति सुख धामू।

बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन, तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन।
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना, ब्रह्मारुप हम दोउ समाना।

तीजे श्री शिवशंकर आहीं, ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही।
तुम सों होई सृष्टि विस्तारा, हम पालन करिहैं संसारा।

शिव संहार करहिं सब केरा, हम तीनहुं कहँ काज घनेरा।
अगुणरुप श्री ब्रह्मा बखानहु, निराकार तिनकहँ तुम जानहु।

हम साकार रुप त्रयदेवा, करिहैं सदा ब्रह्म की सेवा।
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये, परब्रह्म के यश अति गाये।

सो सब विदित वेद के नामा, मुक्ति रुप सो परम ललामा।
यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा, पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा।

नाम पितामह सुन्दर पायेउ, जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ।
लीन्ह अनेक बार अवतारा, सुन्दर सुयश जगत विस्तारा।

देवदनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं, मनवांछित तुम सन सब पावहिं।
जो कोउ ध्यान धरै नर नारी, ताकी आस पुजावहु सारी।

पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई, तहँ तुम बसहु सदा सुरराई।
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन, ता कर दूर होई सब दूषण।

॥ इति श्री ब्रह्मा चालीसा समाप्त ॥

ब्रह्म चालीसा पढ़ने के फायदे (Brahma Chalisa Benefits)

ब्रह्म चालीसा पढ़ने से आपको अपनी वास्तविकता बनाने के लिए ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। चालीसा के श्लोकों का ध्यान करके, आप ब्रह्मांड के कामकाज में अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं

ब्रह्मा की दिव्य ऊर्जा से ओत-प्रोत हैं, और उन्हें भक्ति के साथ पढ़ने से आपको उनका आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। चाहे आप अपने करियर या निजी जीवन में सफलता चाह रहे हों, या बाधाओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हों, ब्रह्म चालीसा (Brahma Chalisa से आप पढ़ सकते है) पढ़ने से आपको भगवान की कृपा प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

ब्रह्म चालीसा पढ़ने से आपके जीवन में सकारात्मक गुणों के विकास, ज्ञान की प्राप्ति और बाधाओं को दूर करने सहित कई लाभ मिल सकते हैं।

Brahma Chalisa Lyrics Video (ब्रह्मा चालीसा)

ब्रह्मा चालीसा : FAQs

ब्रह्मा जी का जन्म कैसे हुआ?

पुराणों में कहा गया है की ब्रह्मा जी का जन्म विष्णु जी के नाभि से हुआ है

ब्रह्मा जी की आयु कितनी होती है?

श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा जी का 51वां वर्ष चल रहा है भगवान ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष बताई गई है। संसार में तीनों देवताओं को अमर बताया गया है जबकि वास्तविकता कुछ भिन्न है।

ब्रह्मा जी की कुल आयु – 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग बताई गई है, 14 इंद्रों का शासन एक दिन में समाप्त हो गया ब्रह्मा जी का। एक इन्द्र का राज्य बहत्तर चतुर्युग का होता है। इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन (72 गुना 14) = 1008 चतुर्युग और उतनी ही रातें, लेकिन एक हजार चतुर्युग माने जाते हैं।) मास = 30 गुना 2000 = 60000 (साठ हजार) चतुर्युग। चतुर्युग के वर्ष = 12 गुना 60000 = 720000 (सात लाख बीस हजार)।

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